आदिम गूंज २४




शायद बेहद खतरनाक जुर्म है...

शायद बेहद खतरनाक जुर्म है
यहां पर सांस लेना
सांस लेने की हिमाकत करना
और एक-एक सांस के लिए
करना जद्दोजहद
...

जब उस रूंधी और घुटी हुई सांस की ध्वनि
भी न जाने क्यों सुनाई देती है
किसी विस्फ़ोट की तरह
शायद इसीलिए उसे दबाने की हरचंद कोशिश में
जूझते हैं लोग
तरह तरह की साजिश/षडयंत्र रच
...

बिना सोचे/समझे कि
अवरूध सांसो की तेज रफ़्तार
अक्सर किसी तूफ़ान की पूर्वसूचना होती है
...
...

-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

आदिम गूंज २३



बांस की नन्ही सी टहनी....

जड़ों का
सघन जाल
रच देता है
एक अदभुत दुनिया
जमीन के अंदर
काफ़ी गहरे तक
कोमल तंतुओं का जाल
कि बांस की नन्ही सी टहनी
सब कुछ भुलाकर
खेलती रहती है आंखमिचौली
उन जड़ों के
अनगिन तंतुओं के
सूक्ष्म सिरों की भूलभूलैया में छिपकर
उस अंधेरी दुनिया में बरसो तक
बगैर इस बात की चिंता किए
कि क्या यही है लक्ष्य
उसके जीवन का
क्योंकि जीवन तो
जी्ना भर है
हर हाल में
...

यह बात वो बांस की टहनी
जानती है शुरू से ही
इसलिए रहती है निश्चिंत
कि तयशुदा वक्त के बाद
उसका भी समय बदलेगा
कि रखेगी वो भी कदम
रोशनी की दुनिया में किसी दिन
और अपने लचीलेपन पर मजबूत
इरादों से रचेगी एक
अद्भुत दुनिया
वो कमजोर नाजुक मुलायम सी टहनी
...
उसे अक्सर सुन पड़ता है
अजीब सी सरसराहट और सुगबुगाहट
अपने आस पास की दुनिया में
जो हंसती खिलखिलाती
बढ़ती जा रही है
अंधेरों से रोशनी की ओर
उस नयी दुनिया के
कितने ही सपने संजोए
वहां पहुंचने की जल्दी में
एक दूसरे से
धक्कामुक्की करती
लड़ती झगड़ती
जिसका सपना
न जाने कबसे
घुमड़ रहा है उनके
चेतना के फ़ेनिल प्रवाह में
...
पर छोटे से झुरमुट
की खामोश दुनिया में
बांस की टहनी
रहती है अपनी जड़ों के करीब
अपनी दुनिया की सच्चाईयों से सराबोर
कि टिकी रहे
हर चुनौती के सामने
अपने मजबूत इरादों के साथ
वो कमजोर मुलायम सी टहनी
...
...

-उज्जवला ज्योति तिग्गा-