आदिम गूंज २६

सच का अज्ञातवास
 
पूरी सजधज और
गाजे बाजे के साथ
मिलता है झूठ
किसी अंजान मोड़ पर
...
और खुद को बचाने की
तमाम तरकीबों के साथ
बेचारा सच
झूठ के झिलमिलाते
गलियारे में
छिपता फ़िरता है
अपने भी साए से
...
बात बेबात पिटता है
जब तब
झूठ के बेशुमार
अनदेखे हाथों से
सिटपिटाया पगलाया
घबराया सच
घूमता है
अपनी ही परछाईयों के इर्द गिर्द
...
उसके पहचान वाले
भी तो फ़ेर लेते हैं चेहरे
वक्त पड़ने पर
और खामोशी के भंवर में
खो जाती है सच की
मूक बांसुरी सी आवाज!
...
झूठ के तेज और तीखे तेवरों से
डरा सहमा सच
खुद को बचाने की खातिर
झूठ की बनाई हुई
भूलभुलैयांदार दुनिया में
जीता है सच
अपनी सांसों की
आहटों तक को रोक कर
...
ताकि झूठ रहे अनजान
सच के छिपने की जगह से
और छापामारी/ सेंधमारी करके
जुटाए सबूत
सच अपने वजूद का!
...
...
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-